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इतिहास के पन्नों में दबकर रह गयी बुंदेला विद्रोह के नायक की बीर गाथा ।



देश की आजादी की खातिर नाराहट के लाल मधुकर शाह ने दी थी अपने प्राणों की आहुति ।

अंग्रेजी सल्तनत के खिलाफ बुंदेला विद्रोह का नेतृत्व किया था नाराहट के शाह परिवार ने ।

ललितपुर (रमेश श्रीवास्तव) । जनपद ललितपुर  के नाराहट गांव के बुंदेला परिवार में जन्मे मधुकर शाह ने अंग्रेजी हुकूमत की मनमानी के खिलाफ 1842 में सशत्र विद्रोह का बिगुल फूंक था इस दौरान उनकी अंग्रेजी सेना के साथ क्षेत्र के जंगलों में कई बार मुठभेड़ हुई सैकडों की संख्या में अंग्रेजी सेना के जवान मारे गये बुंदेला विद्रोह पूरे देश में फ़ैल गया अंग्रेजी सल्तनत डगमगाने लगी थी । अंग्रेजों द्वारा तमाम हथकंडे अपनाने के बाद भी यह विद्रोह रुकने का नाम नहीं ले रहा था आखिर कार अंग्रेजी हुकूमत को दो साल लग गए बुंदेला विद्रोह को रोकने में इस बीच अंग्रेजों ने कुछ देश द्रोहियों की मदद से मधुकर शाह को नींद में सोते हुए उनकी बहिन के घर से गिरफ्तार कर लिया था । 1843में उन्हें सागर जेल में फांसी के फंदे पर लटका दिया गया था ।
ललितपुर जनपद में 26 जनवरी हो या 15 अगस्त जब भी देश की आजादी मनाने का पर्व आता है तो लोगों को याद करो कुर्बानी के नाम पर वही गिने चुने नाम सुनने को मिलते हैं जिन्हें हम वर्षो से सुनते चले आ रहे हैं । लेकिन  देश की आजादी की खातिर मर मिटने वाले ललितपुर जनपद के नाराहट गांव के बुंदेला परिवार में जन्मे जागीरदार मधुकर शाह का नाम कहीं सुनने को नहीं मिलता है मधुकर शाह का बलिदान इतिहास के पन्नों में ही दबकर रह गया । विडंबना देखिए सागर में जहां पर इन्हें फांसी दी गई थी वहां पर तो इनके नाम पर स्मारक ,चौराहे , एवं मार्केट है लेकिन जहां पर भारत मां के इस बीर सपूत ने जन्म लिया था वहां पर कुछ भी नहीं है जबकि नाराहट में आज भी उनके बंशज शाह परिवार मौजूद हैं ।

सागर में आज भी मौजूद है शहीद की समाधि स्थल एवं पार्क ।
अमर शहीद मधुकर शाह के बलिदान को सदैव जीवंत रखने के लिए सागर की जेल में आज भी समाधि स्थल मौजूद है इसके अलावा गोपाल गंज में उनके नाम से  पार्क वार्ड भी मौजूद है।


पूर्व समय में नाराहट में दस गांव सामिल थे इन सभी दस गांव के शासक विजय बहादुर सिंह बुंदेला थे इन्हें राव साहब की उपाधि दी गई थी ।सन् 1836 में सागर के अंग्रेज अफसर ने नया कानून  जारी कर  जागीरदारों ताल्लुकेदारों के अधिकारों  को सीमित करने का प्रयास किया गया । अंग्रेज अफसर की इस हरकत को जागीरदारों ने अपने स्वाभीमान के विरुद्ध समझा और अंग्रेजों के प्रति नफ़रत और विद्रोह की ज्वाला यहीं से भड़कने लगी । इतिहास कारों के अनुसार उस समय ज्यादातर जागीरदार बुंदेला या सजातीय ठाकुर ही थे ।  अंग्रेज़ों ने सज्जन जागीरदार पर पुरानी लगान बकाया दिखाकर सागर के दीवानी जज ने राव साहब पर डिग्री कर दी । वहीं डिग्री जमा न करने पर संपत्ति कुर्क करने के आदेश दे दिए थे । वहीं चन्द्ररापुर के राजा पर पशु चोरी का झूठा आरोप लगाकर उनके उपर भी डिग्री कर दी गई थी साथ ही अमीनों एवं पटवारियों का बोलचाल भी इनके स्वाभीमान को चोट पंहुचा रहा था । अंग्रेजों की इस हरकत से विद्रोह की ज्वाला भड़कने लगी थी।  इस विद्रोह की ज्वाला को खुरई के तहसीलदार ने भांप लिया और उसने वहां से कलैक्टर को सूचना भेज दी की नाराहट के राव साहब,नन्ने डोंगरा के दीवान प्रताप सिंह बुंदेला, बड़े डोंगरा के भोले जू , गुढ़ा के बिक्रम जीत सिंह कभी भी विद्रोह कर सकते हैं । इसी बीच अंग्रेजों ने एक और हरकत करदी बुंदेलखंड के राजाओं के यहां रिवाज था होली पर दरवाजे पर बेड़नी  नृत्य का आयोजन परंपरा के अनुसार कराया जाता था । 26 मार्च को होली के दिन शाहगढ़ की मशहूर बेड़नी झुकुनिया को नृत्य के लिए बुलाया गया था और नृत्य कार्यक्रम चल ही रहा था की अंग्रेजी जमादार आया और उत्सव के बीच से बेड़नी को उठा ले गया । उसकी यह हरकत बुंदेलों को नागवार गुजरी और सभी ने हथियार उठा लिए लेकिन राव साहब ने उस समय सब को शांत कर दिया । आठ अप्रेल को नाराहट में बुंदेलो ने अंग्रेजी साशन के खिलाफ विद्रोह करते हुए दर्जनों अंग्रेज सिपाहियो की हत्या कर दी ।इस घटना के बाद अंग्रेजों ने नाराहट के बिजय बहादुर राव साहब  को गिरफ्तार कर लिया था । अंग्रेजों की इस कार्रवाई से राव साहब के तीन बेटों में तूफान ला दिया था । 
बुंदेला विद्रोह को बाद में  लोधी एवं गौण राजाओं का भी साथ मिलने लगा । अंग्रेजी सेना के साथ दर्जनों बार मुठभेड़ होने के बाद अंग्रेज अफसर हैमिल्टन ने मधुकर शाह एवं इनके भाई गज सिंह और उर्फ गणेश जू  बुंदेला को अपनी बहिन के घर से गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया था बाद में मधुकर शाह को सन 1843 में 21वर्ष की उम्र में सागर जेल में फांसी दी गई थी भाई इनके भाई को काले पानी की सजा दी गई थी उनकी उम्र 19 साल थी ।

बुंदेला विद्रोह के अग्रदूत मधुकर शाह पर लिखी गयीं पुस्तक का अमिताभ बच्चन ने किया था विमोचन ।
अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति का बिगुल फूंकने वाले 1842 के बुंदेला विद्रोह के महानायक नाराहट की माटी में जन्मे बीर सपूत मधुकर शाह के उपर लिखी गई मशहूर फिल्म अभिनेता गोविंद नामदेव द्वारा रचित पुस्तक बुंदेला विद्रोह का अमिताभ बच्चन ने विमोचन किया था जिसमें मधुकर शाह के छठी पीढ़ी के बंशज विक्रम शाह को भी  विमोचन के समय मंच पर बुलाया गया था ।

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