मध्यप्रदेश /सिंगरौली हिन्दी दिवस पर कवित्री का कलम हिन्दी गाथा को पुकारती:-
कार्न्तिधारी उठ हिन्दी कवि कण्ठों युग वणी से ,देख कलेजा फाड़ दिवाले चमक अन्ध कि प्रखण्ड में ,
पतन पाप जलें तो भी हिन्दी जय बोले
अब यकीनन ठोस है हृदय हकीकत की तरह ,वो घरौदा सही मिट्टी का भी घर् होता है ,सीर के सीने में कभी पेट की पावों में कभी ,ओ हिन्दी बस तेरी ही जायगान होता है।
यह छाया है सू जन आम शासिका की
दिनों की थी बहन जननी थी अनाथातिर्यो कि ,आराध्य थी ब्रज -अवनि कि प्रेमिका विश्व की
एेसी वाणी है हिन्दी हिंदुस्तान के दिल की ,जो सुख पावो हिन्दी में वे सुख नहीं अंग्रेजी में ,भला बुरा सब की सूनी एेसी गुरजान हिन्दी में ,जुगन जुगन समझावत हारा कहा न माना कोई रे
तू तो रंगी फिर बिहंगी रे हिंदुस्तान का दिल हिन्दी रे ।
धर्म भीन्नन्ता हो ना सभी जान शेल
तरी में हिल मिल गावे
जान समाज संतुष्ट रहे हिन्दी हिलमिल गीत गावे,
यहाँ बहुत आएँगे काविवर का भाव बताने वाले ,लेकिन हम है समुद्र की लहरों से गिर उठ कर ,
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